Created
March 23, 2019 09:13
-
-
Save kaji-bikash/ef7a06d712d8b71897119ada01115633 to your computer and use it in GitHub Desktop.
A Poem by Bhupi Sherchan
This file contains hidden or bidirectional Unicode text that may be interpreted or compiled differently than what appears below. To review, open the file in an editor that reveals hidden Unicode characters.
Learn more about bidirectional Unicode characters
"एक कविता" | |
‘भोक लाग्यो’ ठिटोप्रति | |
न गाँसको प्रबन्ध | |
न बासको प्रबन्ध | |
तैपनि | |
बाँचेकै छ | |
हुर्केकै छ | |
यो मगन्ते ठिटो | |
नयाँ सडकको पेटीमा | |
पेटीजस्तै सधै असङ्ख्य पाउमुनि कुल्चिएर | |
कसैको वासनाको द्रुतगामी रकेटमा राखेर | |
यो ठिटो उडाइयो | |
अनजान र अनिश्चित भविष्यको अन्तरीक्षमा | |
बिना कुनै स्पेस सूट ! | |
‘अक्सिजन मास्क’ | |
र सुरक्षित सञ्चालनको | |
तर ऊ | |
बेवारिसपनाको भारहीन अवस्थाबाट | |
सकुशल ओर्लियो | |
नयाँ सडकको पेटीमा | |
झुत्रो प्यारासुट ओढेर | |
यो शिशु | |
जन्मियो यिशुजस्तै | |
कुमारी आमाको गर्भबाट | |
र बसेको छ अहिले ऊ | |
नयाँ सडकको पेटीमा | |
ल्याम्प–पोष्टको ‘क्रस’ बोकेर । | |
पुसको जाडो | |
रांै ठाडो हुने रात | |
उदास, उजाड, पूmटपाथ | |
एक कुनामा सिउरेर | |
सुतेको छ ऊ झुत्रो बोरा र पुरानो अखबार ओढेर | |
अखबार ः जसको छातीमा छापिएका छन् | |
ठूला–ठूला अक्षरमा ‘बालदिवस’ का समाचार | |
मन्त्रीज्युबाट उद्घाटन, | |
मिठाई र पुरस्कार वितरण | |
तथा बाल–बालिकाहरुको प्रगतिको विज्ञापन | |
सुत बाबा सुत | |
सुत ज्ञानी सुत | |
सुत राजा सुत | |
यसरी नै निश्चित भै सुत | |
एक दिन यस्तो पनि आउनेछ | |
जब तिम्रा यी अखबार र झुत्रे बोराका | |
लुगा पनि | |
झुण्ड्याइने छन्—म्युजियममा | |
कालुपाँडेजस्तै | |
कालुपाँडेको लुगासँग | |
र त्यस बेला लेख्नेछ इतिहासकारले | |
‘उहिले–उहिले’ को नेपालमा | |
दुई थरिका मानिस थिए | |
एक थरी | |
जो अखबारमाथि पल्टन्थे | |
हेडलाइनको सिरानी हालेर | |
महत्वपूर्ण खबर बनेर, | |
अर्को थरी | |
जो त्यो खबरको न्यानो ओढेर | |
पुस–माघको जाडो काट्थे बेखबर भएर | |
उहिले–उहिलेको नेपाल | |
एउटा बासी अखबारजस्तो थियो । |
Sign up for free
to join this conversation on GitHub.
Already have an account?
Sign in to comment